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10X10 के कमरे में 11 लोगों के साथ रहे, कभी सर्कस में काम के लिए छोड़ा था घर: मिर्जापुर में गुड्डू पंडित के पापा बने

आज की संघर्ष कहानी है मिर्जापुर फेम राजेश तैलंग की। इस सीरीज में राजेश को गुड्डू और बबलू पंडित के पिता के रोल में देखा गया था। उन्होंने बताया कि व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में उन्हें हर कदम पर रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। जिस चीज के लिए उन्होंने खुद से अप्रोच किया, उसमें भी उन्हें केवल असफलता ही मिली।

10X10 के कमरे में 11 लोगों के साथ रहे, कभी सर्कस में काम के लिए छोड़ा था घर: मिर्जापुर में गुड्डू पंडित के पापा बने

आज की संघर्ष कहानी है मिर्जापुर फेम राजेश तैलंग की। इस सीरीज में राजेश को गुड्डू और बबलू पंडित के पिता के रोल में देखा गया था। उन्होंने बताया कि व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में उन्हें हर कदम पर रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। जिस चीज के लिए उन्होंने खुद से अप्रोच किया, उसमें भी उन्हें केवल असफलता ही मिली।

व्यक्तिगत जीवन की बात करें, उनका पहला प्यार अधूरा रहा। आगे भी उन्होंने जिन लड़कियों से दिल की बात कही, सबने रिजेक्ट कर दिया। यही हाल करियर में भी रहा। जहां भी वो काम मांगने जाते, रिजेक्शन ही मिलता। ऑडिशन में NOT FIT का ठप्पा रोज ही मिलना तय था।

दोपहर करीब 2 बजे हम उनके घर इंटरव्यू के लिए पहुंचे। थोड़ी औपचारिकता के बाद उन्होंने बातचीत शुरू की।

आर्ट्स सीखने की जद्दोजहद

राजेश ने बताया कि उनका जन्म बीकानेर, राजस्थान में हुआ था। वे पढ़ाई में अच्छे थे, लेकिन परिवार की कोशिश थी कि वे आर्ट फील्ड में भी पारंगत बनें। घर की कमाई का स्रोत प्रिंटिंग प्रेस था, जिसे उनके पिता चलाते थे। कम उम्र में ही राजेश की दोस्ती प्रिंटिंग मशीनों से करा दी गई। वे फिल्मों और सर्कस के टिकट छापने में मास्टर हो गए।

घर में हर वक्त फिल्म, नाटक और गायिकी से जुड़ी बातें होती थीं। इसका गहरा असर राजेश के जीवन पर पड़ा और वे धीरे-धीरे एक्टिंग में दिलचस्पी लेने लगे। फिल्म टिकट छापने के कारण थिएटर में आसानी से एंट्री मिल जाती थी, जिससे उन्होंने उस वक्त की सारी फिल्में देखीं। कहानी समझने में बड़े भाई ने राजेश की मदद की, जो पत्रकारिता से जुड़े हुए थे।

पहला प्यार रहा अधूरा

राजेश को 13-14 साल की उम्र में पहला प्यार हुआ था। वह लड़की उनके घर के सामने वाले घर में रहती थी। जब वह छत पर आती, तो राजेश भी छत पर जाकर पतंग उड़ाने लगते। वह लड़की जिस रंग के कपड़े पहनती, उसी रंग की पतंग राजेश लाते और उड़ाते। पतंग के रंग से धीरे-धीरे वह लड़की समझ गई कि राजेश उसे पसंद करते हैं। मगर वे दिल की बात कह पाते, इससे पहले ही वह लड़की किसी दूसरे शहर चली गई। इस तरह उनका पहला प्यार अधूरा रह गया।

राजेश ने बताया कि उन्हें प्यार में अधिकतर बार ना ही सुनने को मिला। हालांकि, उनकी लव मैरिज हुई थी।

बीकानेर से दिल्ली तक का सफर

राजेश गर्मी की छुट्टियों में दिल्ली जाते थे। वहां उनके भाई टाइम्स ऑफ इंडिया में थे। वे NSD के वर्कशॉप में एक्टिंग सीखते थे। 14-15 साल की उम्र में उन्हें पता चला कि ग्रेजुएशन के बाद NSD में एक्टिंग की पढ़ाई होती है। उन्होंने बीकानेर में साइंस स्ट्रीम में ग्रेजुएशन पूरा किया। साथ ही दिल्ली और बीकानेर के अमैच्योर थिएटर में काम करते रहे। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने NSD में एडमिशन लिया।

मायानगरी मुंबई की माया में खो गए

राजेश 1993 में NSD से पास आउट हो गए। इसके बाद आम एक्टर्स की तरह उन्होंने मुंबई का रुख किया। मुंबई के शुरुआती दिन उनके लिए अच्छे रहे, क्योंकि दिल्ली में रहते हुए उन्हें टीवी शो शांति में काम मिल गया था। इस कारण शुरुआत में वहां गुजर-बसर करना आसान रहा। शांति सीरियल करते हुए राजेश को कुछ और टीवी शोज में काम मिला, लेकिन वे फिल्मों की दुनिया में आगे बढ़ना चाहते थे। इस कारण उन्होंने कई टीवी शोज ठुकरा दिए। फिर गोविंद निहलानी जैसे डायरेक्टर्स के साथ 3-4 फिल्मों में काम किया, लेकिन कई फिल्मों से उनके सीन फाइनल एडिटिंग में हटा दिए गए। थक-हारकर उन्होंने छोटे पर्दे पर वापसी करने की कोशिश की, लेकिन निराशा हाथ लगी। टीवी इंडस्ट्री में नए बदलाव के कारण छोटे पर्दे पर उनकी एंट्री पूरी तरह से बंद हो गई।

10X10 के कमरे में 11 लोगों के साथ रहे

राजेश को भी आम स्ट्रगलर्स की तरह संघर्ष करना पड़ा। वे अंधेरी ईस्ट में 10X10 के रूम में 11 लोगों के साथ रहते थे। कमरा इतना छोटा था कि करवट लेने तक की जगह नहीं रहती थी। खाने की भी परेशानी रही। राजेश के रूम के पास एक पुजारी जी इडली और डोसा का ठेला लगाते थे। कम दाम में अच्छा खाना मिल जाता। राजेश दिन में वहीं खाने जाते थे। रात में जब पुजारी जी दुकान बंद करके लौटते, तो वे बची हुई इडली राजेश को दे देते थे। इस तरह रात का खाना भी मिल जाता था। इन तकलीफों के बारे में राजेश घर पर नहीं बताना चाहते थे। कम सुविधाओं में ही उन्होंने गुजर-बसर करने का प्लान बना लिया था, लेकिन जब बात नहीं बनी तो वे वापस दिल्ली चले गए।

उथल-पुथल में गुजरे कई साल, लीड रोल के लिए तरसते रहे

मुंबई और इंडस्ट्री में मिली हार से परेशान होकर राजेश 1999 में दिल्ली वापस आए। यहां उन्होंने भाई के साथ उनकी डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में डायरेक्शन का काम किया। 1999 के शो इंडियाज मोस्ट वांटेड के 80 एपिसोड का भी डायरेक्शन किया। यह सिलसिला डेढ़-दो साल तक चला, फिर वे मुंबई एक बार फिर किस्मत आजमाने चले गए। उम्मीद थी कि इस बार लीड रोल मिल ही जाएगा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। सिर्फ पुलिस इंस्पेक्टर, चाचा और गुंडे का रोल ही मिलता। गुजर-बसर के लिए उन्होंने यह काम भी किया। 4-5 साल तक यह सिलसिला चला, फिर वे दिल्ली वापस चले गए। इसके कुछ समय बाद तीसरी बार उनका मुंबई आना हुआ।

बिग बी के साथ काम करना सपने के पूरे होने जैसा

2004 की फिल्म देव में राजेश ने बिग बी के साथ काम किया था। वे बचपन से ही बिग बी के बहुत बड़े फैन थे। जब यह फिल्म उन्हें ऑफर हुई थी तो उन्होंने डायरेक्टर से कहा था कि उन्हें वही रोल मिले, जिसका स्क्रीन स्पेस अमिताभ बच्चन के साथ ज्यादा हो। डायरेक्टर ने उनका यह ख्वाब पूरा किया। फिल्म में वे सिर्फ बिग बी के साथ ही दिखे। सेट पर उन्होंने 13-14 दिन बिग बी के साथ बिताए। 1-2 बार राजेश से उनकी बातचीत भी हुई थी। फिल्म में उन्होंने निगेटिव रोल किया था। उन्हें ऑन-स्क्रीन बिग बी को गोली मारते दिखाया गया था।

भरोसा नहीं था कि सीरीज मिर्जापुर इतनी बड़ी हिट होगी

वेब सीरीज मिर्जापुर में राजेश को गुड्डू और बबलू के पिता के रोल में देखा गया था। वे सीरीज की कहानी से बहुत प्रभावित हुए थे। हालांकि, यह उम्मीद नहीं थी कि उसका असर इतना गहरा होगा। सीरीज में उन्होंने सख्त पिता का रोल प्ले किया था। उन्हें यह किरदार निभाने में थोड़ी परेशानी हुई थी। दरअसल, रियल लाइफ में ना तो उनके पिता सख्त थे और ना वे खुद अपने बेटे के प्रति कठोर हैं। एक सख्त पिता के हाव-भाव को सही ढंग से पकड़ना उनके लिए थोड़ा चैलेंजिंग था।

राजेश ने कहा कि आने वाले दिनों में वे एक ऐसी फिल्म में काम करना चाहते हैं जिसमें उनका किरदार शायर वाला हो और साथ में कॉमेडी का भी तड़का रहे।

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